March 19, 2024

हमारी बात

संस्‍कृत के विकास से ही भारतीय संस्‍कृति रहेगी संरक्षित, बने जन-जन की भाषा…

संस्‍कृत हमारी माताओं की माता है। इसलिए भाषायी दृष्टि से इसका व्‍यापक प्रसार एवं संवर्धन होना अति आवश्‍यक है। वर्तमान में कोई वेबसाइट संस्‍कृत अनुरागियों की ऐसी नहीं है, जहां वे भास्‍कर, जागरण,नवभारत, लोकमत या अन्‍य ऐसी ही किसी वेबसाइट पर जाकर सभी राष्‍ट्रीय, अंतरराष्‍ट्रीय, आर्थ‍िक, मनोरंजन या लेख इत्‍यादि एक ही स्‍थान पर समाचारों के स्‍तर पर संस्‍कृत में पढ़ना संभव हो सके।

हमारा प्रयास है कि हम http://sanskritvarta.in/ को इस प्रकार का बनाएं कि कोई भी इसके माध्‍यम से न केवल संस्‍कृत ज्ञान प्राप्‍त करें। भारतीय संस्‍कृति के विविध पहलुओं को एक ही स्‍थान पर आकर समझ सके, वरन इससे आगे वह सभी रोजमर्रा के समाचार भी संस्‍कृत में पढ़-देख सके। वेबसाइट के बाद अतिशीघ्र संस्‍कृत का न्‍यूज एप लॉन्‍च करने पर भी हमारा विचार चल रहा है।

यहां हमारा स्‍पष्‍ट मानना है कि जैसे अंग्रेजी, हिन्‍दी या अन्‍य भाषाओं में वेबसाइट और सर्वर पर कई विषयों से संबंधित पठनीय एवं संग्रहणीय सामग्री ओपन सोर्स के लिए मुफ्त में पड़ी हुई है। ऐसे ही http://sanskritvarta.in/ पर भी सभी पठनीय एवं संग्रहणीय सामग्री संस्‍कृत में ऑपन (खुले तौर पर ) यूनीकोड में उपलब्‍ध हो, जिसे कॉपी करना है वह कॉपी करे। जिसे उसे अपने समाचार पत्र या पत्रिका अथवा अपने शोध आलेख या अन्‍य किसी कार्य के लिए उपयोग करना है तो वह उसे अपनी सुविधानुसार उपयोग में लेवें । यह एक निशुल्‍क संस्‍कृत की वेबसाइट है।

इस संस्‍कृत वेबसाइट के निर्माण एवं विकास के लिए निश्‍चि‍त तौर पर मेरे कुछ सहयोगियों का योगदान अस्‍मरणीय है, जिनमें कि अशुतोष कुमार झा, धनन्‍जय सिंह, रविरंजन सिंह, डॉ. निवेदिता शर्मा, डॉ, दीपक रघुवंशी, शरद शर्मा विशेष उल्‍लेख करना आवश्‍यक है। इन सभी ने एक-दूसरे को प्रेरित किया और इस निष्‍कर्ष पर पहुंचे कि संस्‍कृत का घर-घर जागरण होगा, तभी भारत की सनातन संस्‍कृति अक्षुण्‍ण बनी रहेगी। वर्तमान पीढ़ी संस्‍कृत के ज्ञान से दूर हो रही है और इसी के साथ ही उनके भीतर के संस्‍कार भी नितरोज तिरोहि‍त हो रहे हैं। ऐसे में आवश्‍यक है कि कोई ऐसा माध्‍यम संस्‍कृत का बने जहां से संचार माध्‍यमों को सूचनाएं निशुल्‍क उपलब्‍ध कराई जा सकें। इसलिए इन सभी ने मिलकर ”अक्षरम्” संस्‍था का निर्माण किया। जिसका मुख्‍य उद्देश्‍य ही संस्‍कृत, संस्‍कार और भारतीय परम्‍पराओं को आधुनिक संदर्भ में व्‍याख्‍यायित करना एवं उन्‍हें वर्तमान परिप्रेक्ष्‍य में विस्‍तार देना है।

मन में यह भी विचार आ सकता है कि ”अक्षरम्” नाम ही क्‍यों ? तब गहराई से विचार करने पर ध्‍यान में आया कि भगवान शिव का नाम अक्षरम् है। शिव के डमरु से निकली ध्‍वनियों से अक्षरों की उत्‍पत्ति हुई है। डमरू बजता है तो उसमें से 14 तरह के साऊंड निकलते हैं। पुराणों में इसे मंत्र माना गया। यह साऊंड इस प्रकार है:- ‘अइउण्‌, त्रृलृक, एओड्, ऐऔच, हयवरट्, लण्‌, ञमड.णनम्‌, भ्रझभञ, घढधश्‌, जबगडदश्‌, खफछठथ, चटतव, कपय्‌, शषसर, हल्‌। उक्त आवाजों में सृजन और विध्वंस दोनों के ही स्वर छिपे हुए हैं। जैसे कि हमारी वाणी और लिखे हुए से हमें पता चल जाता है कि कैसे वह निर्माण का कारण भी बनते हैं और विनष्‍ट‍ि का कारण भी ।

वस्‍तुत: शिवसूत्रों को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है। पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत एवं नियमित करने के उद्देश्य से भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों यथा ध्वनि-विभाग (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद, आख्यात, क्रिया, उपसर्ग, अव्यय, वाक्य, लिंग इत्यादि तथा उनके अन्तर्सम्बन्धों का समावेश अष्टाध्यायी में किया है। अष्टाध्यायी में ३२ पाद हैं जो आठ अध्यायों मे समान रूप से विभक्त हैं ।

पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के विशाल कलेवर का समग्र एवं सम्पूर्ण विवेचन लगभग ४००० सूत्रों में किया है , जो आठ अध्यायों में (संख्या की दृष्टि से असमान रूप से) विभाजित हैं। तत्कालीन समाज मे लेखन सामग्री की दुष्प्राप्यता को ध्यान में रखते हुए पाणिनि ने व्याकरण को स्मृतिगम्य बनाने के लिए सूत्र शैली की सहायता ली है। पुनः, विवेचन को अतिशय संक्षिप्त बनाने हेतु पाणिनि ने अपने पूर्ववर्ती वैयाकरणों से प्राप्त उपकरणों के साथ-साथ स्वयं भी अनेक उपकरणों का प्रयोग किया है जिनमे शिवसूत्र या माहेश्वर सूत्र सबसे महत्वपूर्ण हैं। माहेश्वर सूत्रों की उत्पत्ति भगवान नटराज (शिव) के द्वारा किये गये ताण्डव नृत्य से मानी गयी है।

नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥

अर्थात:- “नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपंच (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी।” डमरु के चौदह बार बजाने से चौदह सूत्रों के रूप में ध्वनियाँ निकली, इन्हीं ध्वनियों से व्याकरण का प्रकाट्य हुआ। इसलिये व्याकरण सूत्रों के आदि-प्रवर्तक भगवान नटराज को माना जाता है। फिर अक्षरम् शिव स्‍वरूप होने के कारण ब्रह्म स्‍वरूप भी है, इसलिए इन सभी बन्‍धुओं ने अक्षरम् नाम से संस्‍था का निर्माण कर इस संस्‍कृत कार्य एवं अन्‍य संस्‍कार और सनातन धर्म के श्रेष्‍ठ विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए इसे माध्‍यम के रूप में सभी के सामने लाने का निश्‍चय किया।

अत: अब इसमें अन्‍य सभी संस्‍कृत के विद्वानों का सहयोग अपेक्षित हैं। यदि हम सभी मूल संस्‍कृत के विद्यार्थी न होकर इस तरह से अपनी माता की माता की कई पीढि़यों की माता, संस्‍कृत के विस्‍तार के लिए प्रयास कर रहे हैं, तब ऐसे में निश्‍चित ही उन सभी की सहभागिता हमसे कई गुना अधिक बढ़ जाती है जोकि संस्‍कृत को जानते और उसे जीवन में जीते भी हैं। यह http://sanskritvarta.in/ वेबसाइट कोई धन कमाने का उद्देश्‍य नहीं । यह एक विचार है, संस्‍कृत भाषा को जन-जन की भाषा बनाने के संकल्‍प का । अत: यहां कहना होगा कि बिना आप सभी के सहयोग के यह संकल्‍प पूरा नहीं हो सकता है । जितने अधिक शुभेच्‍छू इस पुनीत कार्य में जुड़ेंगे यह कार्य उतनी ही तेजी के साथ सर्वव्‍याप्‍त होता जाएगा।

आप जितना समय चाहें उतना दें । जो भी संस्‍कृत में सार्थक समाचार, विचार, आलेख, तत्‍कालीन लेख, समीक्षा, कहानी, कविता, गीत या जो भी साहित्‍यहिक अथवा सूचना की दृष्टि से महत्‍व रखता है वह सभी कुछ आप यहां अपनी इच्‍छानुसार पठनीय सामग्री संस्‍कृत में उपलब्‍ध करा सकते/सकती हैं। यदि फोटो एवं दूरभाष मेल के साथ भी आपको उसे प्रकाशित करवाना है तो वह भी कार्य हमारी ओर से किया जाएगा। हम फिर बताएं यहां सभी कुछ निशुल्‍क है।

जिन लोगों को इस http://sanskritvarta.in/ से मेटर लेकर अपने समाचार पत्र या पत्रिकाएं तैयार करना है, वे भी यहां से सामग्री उठाकर उसका उपयोग अपने हिसाब से कर सकते हैं, इसके लिए यहां उनका स्‍वागत है। हमारा यहां स्‍पष्‍ट मानना है कि जितने अधिक संस्‍कृत में पत्र-पत्रिकाएं होंगी, उतना ही अधिक संस्‍कृत का विस्‍तार होगा। वह घर-घर में जाएंगी, जिससे कि संस्‍कृत जन-जन की अपनी भाषा बनेगी। प्रारंभ में हो सकता है कि सभी का अपेक्षित सहयोग इस दिशा में नहीं मिले, किंतु जब अधिकांश समाचार पत्र-पत्रिकाएं एवं मीडिया के अन्‍य माध्‍यमों में संस्‍कृत दिखाई देगी तब आप यह निश्‍चित मान सकते हैं कि संस्‍कृत के प्रति आम व्‍यक्‍ति का अनुराग बढ़ना स्‍वभाविक है और ऐसा होने में ही भारतीय संस्‍कृति का विस्‍तार है।

इसी के साथ भारत सरकार एवं राज्‍य सरकारों के विज्ञापन बजट का उपयोग भी संस्‍कृत समाचार पत्र व पत्रिकाओं में ठीक ढंग से हो सकेगा । इससे एक ओर हमारे संस्‍कृत जाननेवाले साथियों को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे तो दूसरी ओर भाषा की सेवा भी होती रहेगी। संस्‍कृत से संस्‍कृति का विकास भी होगा। साथ ही संस्‍कृत भाषा में समाचार संप्रेषण का कार्य कर रहे आकाशवाणी-दूरदर्शन एवं अन्‍य संस्‍थान में निकलनेवाली शासकीय नौकरियों में भी यहां आपका लिखा हुआ आपके काम आएगा। भविष्‍य में http://sanskritvarta.in/ से जितने विद्वान जुड़ेंगे, उनका अलग से उनके नाम से ब्‍लॉग भी यहां बनाया जाना प्रस्‍तावित है।

पुनश्‍च आग्रह
आप हमें संस्‍कृत में ताजा घटनाओं पर लिखे समाचार, लेख, फीचर, समीक्षाएं, साक्षात्‍कार, और वह जो कुछ ही जिसे आपके द्वारा हमें प्राप्‍त हो सकता है, कृपया संस्‍कृत में उपलब्‍ध करवाइए। हम उसे जैसा है वैसा ही बिना किसी बदलाव के प्रसारित करेंगे, हां इतना अवश्‍य होगा कि वर्तनी का जहां सुधार आवश्‍यक होगा, वह उसमें अवश्‍य किया जाएगा।

आपका इस पुण्‍य कार्य में पूरा सहयोग मिलेगा ही ऐसी कामना के साथ

धन्‍यवाद सहित

डॉ. राजेश शर्मा                  डॉ. मयंक चतुर्वेदी
7069919629                 8839418959

मेल आईडी : sanskritvartabharat@gmail.com
वेबसाईट : sanskritvarta.in

// सहयोग //

देव भाषा संस्‍कृत के प्रचार-प्रसार के कार्य को सतत् चलाने हेतु हम सभी से आर्थिक सहयोग चाहते हैं। सहयोग की हर बूंद हमारे लिये महत्‍वपूर्ण है।
“शुभम् अस्‍तु”

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