September 8, 2024

संस्‍कृत को जन-जन की भाषा बनाने लिए आह्वान

नमो नम: । सादर नमस्‍कार ।

संस्‍कृत हमारी माताओं की माता है। इसलिए भाषायी दृष्टि से इसका व्‍यापक प्रसार एवं संवर्धन होना अति आवश्‍यक है। वर्तमान में कोई वेबसाइट संस्‍कृत अनुरागियों की ऐसी नहीं है, जहां वे भास्‍कर, जागरण,नवभारत, लोकमत या अन्‍य ऐसी ही किसी वेबसाइट पर जाकर सभी राष्‍ट्रीय, अंतरराष्‍ट्रीय, आर्थ‍िक, मनोरंजन या लेख इत्‍यादि एक ही स्‍थान पर संस्‍कृत में खबरें पढ़ सकें ।

हमारा प्रयास है कि हम http://sanskritvarta.in/ को इस प्रकार का बनाएं कि कोई भी इसके माध्‍यम से न केवल संस्‍कृत ज्ञान प्राप्‍त करें। भारतीय संस्‍कृति के विविध पहलुओं को एक ही स्‍थान पर आकर समझ सके, वरन इससे आगे वह सभी रोजमर्रा के समाचार भी संस्‍कृत में पढ़-देख सके। वेबसाइट के बाद अतिशीघ्र संस्‍कृत का न्‍यूज एप लॉन्‍च करने पर भी हमारा विचार चल रहा है।

यहां हमारा स्‍पष्‍ट मानना है कि जैसे अंग्रेजी, हिन्‍दी या अन्‍य भाषाओं में वेबसाइट और सर्वर पर कई विषयों से संबंधित पठनीय एवं संग्रहणीय सामग्री ओपन सोर्स के लिए मुफ्त में पड़ी हुई है। ऐसे ही http://sanskritvarta.in/ पर भी सभी पठनीय एवं संग्रहणीय सामग्री संस्‍कृत में ऑपन (खुले तौर पर ) यूनीकोड में उपलब्‍ध हो, जिसे कॉपी करना है वह कॉपी करे। जिसे उसे अपने समाचार पत्र या पत्रिका अथवा अपने शोध आलेख या अन्‍य किसी कार्य के लिए उपयोग करना है तो वह उसे अपनी सुविधानुसार उपयोग में ले । यह एक निशुल्‍क संस्‍कृत की वेबसाइट है।

अत: इसमें सभी संस्‍कृत के विद्वानों का सहयोग अपेक्षित हैं। यदि मैं हिन्‍दी का विद्यार्थी होकर इस तरह से अपनी माता की माता की कई पीढि़यों की माता, संस्‍कृत के विस्‍तार के लिए विचार कर रहा हूं तब ऐसे में निश्‍चित ही उन सभी की सहभागिता मुझसे कई गुना अधिक बढ़ जाती है जोकि संस्‍कृत को जानते और उसे जीवन में जीते भी हैं। यह http://sanskritvarta.in/ वेबसाइट कोई धन कमाने का उद्देश्‍य नहीं । यह एक विचार है, संस्‍कृत भाषा को जन-जन की भाषा बनाने के संकल्‍प का । निश्‍चित ही बिना आप सभी के सहयोग के यह संकल्‍प पूरा नहीं हो सकता।

आप जितना समय चाहें उतना दें । जो भी संस्‍कृत में सार्थक समाचार, विचार, आलेख, तत्‍कालीन लेख, समीक्षा, कहानी, कविता, गीत या जो भी साहित्‍यहिक अथवा सूचना की दृष्टि से महत्‍व रखता है वह सभी कुछ आप यहां अपनी इच्‍छानुसार पठनीय सामग्री संस्‍कृत में उपलब्‍ध करा सकते/सकती हैं। यदि फोटो एवं दूरभाष मेल के साथ भी आपको उसे प्रकाशित करवाना है तो वह भी कार्य हमारी ओर से किया जाएगा। हम फिर बताएं यहां सभी कुछ निशुल्‍क है।

जिन लोगों को इस http://sanskritvarta.in/ से मेटर लेकर अपने समाचार पत्र या पत्रिकाएं तैयार करना है, वे भी यहां से सामग्री उठाकर उसका उपयोग अपने हिसाब से कर सकते हैं, इसके लिए यहां उनका स्‍वागत है। हमारा यहां स्‍पष्‍ट मानना है कि जितने अधिक संस्‍कृत में पत्र-पत्रिकाएं होंगी, उतना ही अधिक संस्‍कृत का विस्‍तार होगा। वह घर-घर में जाएंगी, जिससे कि संस्‍कृत जन-जन की अपनी भाषा बनेगी।

इसी के साथ भारत सरकार एवं राज्‍य सरकारों के विज्ञापन बजट का उपयोग भी संस्‍कृत समाचार पत्र व पत्रिकाओं में ठीक ढंग से हो सकेगा । इससे एक ओर हमारे संस्‍कृत जाननेवाले साथियों को रोजगार मिलेगा, दूसरी ओर भाषा की सेवा भी होती रहेगी।

साथ ही संस्‍कृत भाषा में समाचार संप्रेषण का कार्य कर रहे आकाशवाणी-दूरदर्शन की एवं अन्‍य संस्‍थान में निकलनेवाली शसकीय नौकरियों में भी यहां आपका लिखा हुआ आपके काम आएगा।
भविष्‍य में http://sanskritvarta.in/ से जितने विद्वान जुड़ेंगे, उनका अलग से उनके नाम से ब्‍लॉग भी यहां बनाया जाना प्रस्‍तावित है।

पुनश्‍च आग्रह
आप हमें संस्‍कृत में ताजा घटनाओं पर लिखे समाचार, लेख, फीचर, समीक्षाएं, साक्षात्‍कार, और वह जो कुछ ही जिसे आपके द्वारा हमें प्राप्‍त हो सकता है, कृपया संस्‍कृत में उपलब्‍ध करवाइए। हम उसे जैसा है वैसा ही बिना किसी बदलाव के प्रसारित करेंगे, हां इतना अवश्‍य होगा कि वर्तनी का जहां सुधार आवश्‍यक होगा, वह उसमें अवश्‍य किया जाएगा।
आपका इस पुण्‍य कार्य में पूरा सहयोग मिलेगा ही ऐसी कामना के साथ

धन्‍यवाद सहित

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

9425601264, 8839418959
मेल आईडी : sanskritvartabharat@gmail.com
http://sanskritvarta.in/